हिन्दी साहित्य का इतिहास – भक्ति के उदय और विकास
इस वीडियो के माध्यम से भक्ति के उदय और विकास का स्वरूप, भक्ति साहित्य की विविध प्रवृत्तियाँ, निर्गुण और सगुण भक्ति साहित्य का अन्तर, हिन्दी साहित्य के विकास में भक्ति साहित्य की भूमिका और उसका महत्व समझ सकेंगे।
*** भक्ति का उदय दक्षिण में आलवार भक्तों द्वारा हुआ, किन्तु इसके पीछे एक सामाजिक-दार्शनिक आधार भी मौजूद था। भक्ति का बाह्य और आन्तरिक स्वरूप सुनिचित करने में चार आचार्य मुख्य थे - रामानुज, मध्वाचार्य, निम्बार्क और वल्लभाचार्य
*** निर्गुण राम के उपासकों में कबीर, तथा नानक जैसे भक्त हुए तो सगुण राम की लोकमंगलकारी लीलाओं के उपासक तुलसीदास हुए।
*** वात्सल्य और प्रेम का वर्णन करने वाले सूरदास जैसे भक्त हुए। इसके साथ ही इस्लाम की सूफी काव्य-परम्परा और भारत के नाथपन्थियों से प्रभाव ग्रहण कर हिन्दी में सूफी काव्य भी लिखे गए। सूफी कवियों ने भारतीय लोक-कथाओं पर आधारित प्रबन्ध काव्यों की रचना की है, मुल्ला दाऊद का चन्दायन तथा जायसी का पद्मावत आदि उदाहरण स्वरूप देखा जा सकता है।
*** हिन्दी के भक्ति साहित्य की लगभग चार सौ वर्षों की विराट चिन्तन परम्परा ने कबीर, नानक, सुर, तुलसी, जायसी और मीरा बाई जैसे महान भक्तों को जन्म दिया।
जय हिन्दी – जय भारत